aasmaaN chale
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महफ़िल से हो के ख़्वार सब आशुफ़्तगाँ चले !
मेरे सिवा न कोई था जिसकी ज़ुबाँ चले !
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घर कर गया है जी में इक अफ़सोस दायमी ;
ज़िंदा रहेंगे ज़ीस्त का जब तक ज़ियाँ चले !
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मग़रूर है तो क्या हुआ मजबूर भी तो है ;
बन वो ज़मीं कि ज़ेरे-कशिश आसमाँ चले !
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होना न इतना दूर कि फिर सुलह के लिए;
सारा सफ़र हमारे कोई दरमियाँ चले !
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पहलू में पूछते हो कि बैठा हूँ किस लिये ;
जाने लगूँ कहीं तो कहोगे कहाँ चले !
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जिनको नहीं पता कि अलग हैं “ख़ुदा” “खुदा”;
हँसता हूँ मुझको छेड़ने वो नौ-जवाँ चले !
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आंसू बहा के जल्द ही चुप हो लिये फ़राज़ ;
कुछ हो जिगर में जान तो आहो-फ़ुग़ाँ चले !
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