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भुला के शिकवे गिले वो हमसे गले लगेगा तो ईद होगी !
वगर्ना रस्मन तो रोज़े रक्खे हैं चाँद निकला तो ईद होगी !
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कई महीने उन्होंने अपनी ज़रूरतों की तरफ़ न देखा ;
वो बाप जिनको पता था घर में बचेगा ख़र्चा तो ईद होगी !
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ये सदक़ा-ए-फ़ित्र देने वालों की ऐश से क्या हमें ग़रज़ हो ;
मिले बराबर से सबको रोटी मकान कपड़ा तो ईद होगी !
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कहें मुबारक तो उनसे कहना हमारे हक़ में भी कुछ तो बोलो ;
फ़सादियों के शर से बचकर रहेंगे ज़िंदा तो ईद होगी !
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लुटे चमन पर कई निगाहें ख़ुशी के दिन बस बरस रहीं हैं ;
क़सम ख़ुदा की जब इस नमी से उगेगा सब्ज़ा तो ईद होगी !
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वो सूने आँगन में बूढ़ी आँखें जो दर दरीचों पे टिक गयी हैं ;
था एक उनका अज़ीज़ तारा जो लौट आया तो ईद होगी !
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गुज़िशता सालों वबा ने हमको फ़राज़ यूँ ही ढँका हुआ था ;
कहा किए सब ये ग़म का बादल अगर छँटेगा तो ईद होगी !
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