chalti rahi sadak
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दिल में शबे-फ़िराक़ जो बनती रही सड़क ||
आँखें गड़ा के नींद भी तकती रही सड़क ||
دل میں شب فراق جو بنتی رہی سڑک-
آنکھیں گڑا کے نیند بھی تکتی رہی سڑک-
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मंज़िल कभी सुकून की आई नहीं तो क्यों ;
ता-उ’म्र आशना हमें लगती रही सड़क ?
منزل کبھی سکون کی آیی نہیں تو کیوں ؛
تا عمر آشنا ہمیں لگتی رہی سڑک-
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कुछ ना-मुराद थे कि जिन्हें घर नहीं मिला ;
थी परवरिश मुहाल पे करती रही सड़क ||
کچھ نا مراد تھے کی جنہیں گھر نہیں ملا ؛
تھی پرورش محال پہ کرتی رہی سڑک-
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हर राह अक़्लो-होश की दुशवार ही रही;
आसां मिरे जुनून को मिलती रही सड़क !!
ہر راہ عقل ہوش کی دشوار ہی رہی ؛
آساں میرے جنون کو ملتی رہی سڑک-
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नारा भले ही अद्ल था पर दौरे-इंक़ेलाब ;
सस्ते लहू की धार से सनती रही सड़क !!
نارا بھلے ہی عدل تھا پر دور انقلاب ؛
سستے لہو کی دھار سے سنتی رہی سڑک-
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कल हादिसे में एक-दो इन्सान मर गए ;
अपने मगर हिसाब से चलती रही सड़क ||
کل حادثے میں ایک دو انسان مر گئے ؛
اپنے مگر حساب سے چلتی رہی سڑک-
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तब तक हुआ नहीं कभी बे-राह मैं फ़राज़ ;
जब तक नुक़ूशे-पा मिरे लिखती रही सड़क ||
تب تک ہوا نہیں کبھی بے راہ میں فراز ؛
جب تک نقوش پا میرے لکھتی رہی سڑک-
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