eeza-e-december
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करते हुए गुज़रा है फ़क़त हाए दिसम्बर !
दे जनवरी कुछ मरहमे-ईज़ा-ए-दिसम्बर !
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हों आप ही ख़ुश आमदे-तारीख़े-यकुम पर ;
जाता हूँ मैं पढ़ने को जनाज़ा-ए-दिसम्बर !
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जब वो ही नहीं साथ तो फिर मेरी बला से ;
जाता है जो कल, आज चला जाए दिसम्बर !
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ठंडक में जो दुनिया के किनारों को हरा दे ;
है आलमे-हिजराँ में वो सहरा-ए-दिसम्बर !
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गर्मी पे क़नाअ’त करें रहने दें फ़राज़ आप ;
सब रख नहीं सकते हैं तमन्ना-ए-दिसम्बर !
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