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करम ख़ुदा का आज कुछ, मज़ीद है, ईद है ||
कि सुल्हे-नौ की आ’लमी , नवीद है, ईद है ||
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उन्हें अता हो ग़ैब से, क़वी-जिगर, हौसला ;
जिन्हें किसी तरह का ग़म, शदीद है, ईद है ||
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अ’मल जो कल शऊर में, सज़ा के थे मुस्तहक़ ;
रही न उनपे आज कुछ, व’ईद है, ईद है ||
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किसी के पास मालो-ज़र, नहीं हैं तो क्या हुआ ;
जज़ा-ए-माह-ए-सौम की, रसीद है ? ईद है !!
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हैं क़िस्मते-ख़राब से तो इस क़दर आशना ;
उमीद-ए-वस्ल-ए-यार ही, बई’द है, ईद है ||
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फ़राज़ हम तो चाँद के हैं मुन्तज़िर आज भी ;
गली में क्योँ मचा है शोर, ईद है, ईद है ||
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