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जब तक न उनके हुस्न के शायाँ हुनर मिले ||
कैसे किसी को दादे-सुख़न ख़ास-कर मिले ||
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ज़ुल्मत मिली हमें पसे-बारान-ए-अब्र-ए-हिज्र ;
ख़ुश-बख़्त हैं वो चाँद जिन्हें बाम पर मिले ||
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दरबाँ से क्यों हो शिकवा-ए-कोताही-ए-नज़र ?
हैं जब अ’दू से आपके दीवार-ओ-दर मिले !!
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साक़ी जहां शराब को , देता है नाम और ;
शरबत जनाब-ए-शेख़ भी, पीते उधर मिले ||
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या रब करेंगे फ़िक्र तो उक़्बा की हम ज़रूर ;
राहत अज़ाब-ए-ज़ीस्त से पहले मगर मिले ||
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रिश्ते की फिर रही नहीं कुछ आबरू, अगर ;
तुमको ज़बान-ए-ग़ैर से मेरी ख़बर मिले ||
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हर गाम ही क़वी हुई मंज़िल की आरज़ू ;
अच्छा है कुछ ख़राब हमें हम-सफ़र मिले ||
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उसके हैं बर-ख़िलाफ़ मेरी बे-नियाज़ियाँ ;
जिस से बहुत तपाक से सारा शहर मिले ||
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आंधी ने इस तरह किया चिंगारियों पे रक़्स ;
अतराफ़ में किसी के सलामत न घर मिले ||
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हर इक अदा से यार की वाक़िफ़ नहीं हैं हम ;
दो दिन हुए हैं आज ही उनसे नज़र मिले ||
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तस्वीर बद-नुमाई की भी खींचना फ़राज़ ;
उन्वान-ए-हुस्न से तुम्हें फ़ुरसत अगर मिले ||
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