gardan jhuka ke ham
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इक तो नहीं हैं यार अभी ना-ख़ुदा के हम ||
उसपर है जुर्म और कि बाग़ी हवा के हम ||
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नेज़े पे लाये सर, सरे-मक़तल उठा के हम ||
उनको लगा था आएंगे गर्दन झुका के हम ||
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वाइज़ अज़ाबे-नार की सोज़िश से मत डरा ;
बैठे हैं मै-कदे में , दिलो - जां जला के हम ||
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अच्छा हुआ कि गाल की लाली ने कह दिया ;
रखते वगर्ना लाज में क्या-क्या छुपा के हम ||
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है शौक़-ए-आगही पे ज़मानो-मकाँ की क़ैद ;
देखें हर एक राह किधर आज़मा के हम ||
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थीं वहशतें, कि रंज था, कि दर्दे-शिकस्तगी ;
रोए बहुत उन्हें शबे-हिजरत रुला के हम !!
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