ghar jaata hai
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सच है क़िस्मत पे भी निस्बत का असर जाता है !
पैराहन तन पे तिरे आ के निखर जाता है !
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दिल को अच्छे नहीं लगते हैं मशाग़िल ये मगर ;
जो गुज़रने का नहीं वक़्त, गुज़र जाता है !
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इसने बचपन में फ़सादात में क्या देखा था ;
मुख्तसर भी कोई पूछे तो ये डर जाता है !
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होश की राह पे चलते हैं तो दिल रोता है ;
दिल की सुनते हैं अगर बात तो सर जाता है !
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पर तिरी याद-ए-मुसलसल ने भरम तोड़ दिया ;
ज़ख़्म सुनते थे कि रिसते हुए भर जाता है !
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इतने दिलकश नहीं कोहसारो-चमनज़ार फ़राज़ ;
आदमी मौत से बचता है तो घर जाता है !