.
कुछ यूँ मिरे गुलशन को ख़िज़ाँ-रुत ने छुआ है !
पूछे हैं अदू भी कि ये पतझड़ है कि क्या है !
.
पत्ता जो किसी शाख़ पे इक-आध बचा है !
हालात से माली का पता पूछ रहा है !
.
रौनक़ नहीं होनी है यहाँ हश्र से पहले;
इस दिल का मकीं दूर हमेशा को गया है !
.
इक दुख़तरे-बे-दम है यतीमी से हरासाँ ;
इक लख़्त-ए-जिगर शोर में ख़ामोश खड़ा है !
.
पहले न दिखा हाय कि कमरे में तुम्हारे;
टूटी है कोई चीज़ कहीं ज़ंग लगा है !
.
बाक़ी तो इनायात का मैं ज़िक्र करूँ क्या;
ये नाम भी मुझको तिरे देने से मिला है !
.
किरदार समझने में लगी देर हमें कुछ ;
पर्दा भी क़लमकार से उजलत में गिरा है !
.
उसने मुझे उस दश्त में ज़मज़म ही पिलाया ;
जिस दश्त की क़िस्मत में न मरवा न सफ़ा है !
.
होती नहीं मन्तिक़ से मिरी लज़्ज़ते-ग़म कम ;
है कारे-ख़िरद ख़ूब मगर दिल के सिवा है !
.
बच्चा है फ़राज़ आज भी मुद्दत से कि जिसकी;
गुल्लक में फ़क़त याद का सरमाया बचा है !
.