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पेशा है जिनका हालते-नाचार देखना !
कैसे करेंगे देख के, इनकार, देखना !
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ख़ुद पर जो बात आई तो ये सब शरीफ़ लोग ;
मुजरिम के हो रहेंगे तरफ़दार देखना !
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मत कर बहस तू जानिब-ए-बाम-ए-उरूज आ ;
आसाँ यहाँ से है पसे-दीवार देखना !
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माना कि इस जहान में मुश्किल नहीं है कुछ ;
लेकिन किसी अज़ीज़ को बीमार देखना !
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होने तो दो ज़रा अभी मय्यत सुपुर्दे-ख़ाक ;
दो पल नहीं रुकेंगे ये ग़म-ख़्वार देखना !
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फ़तवा हमारा कुफ़्र का हर सल्तनत पे है;
सीखा नहीं है मसलके-दरबार देखना !
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कलयुग नहीं है ये न क़यामत क़रीब है ;
छोड़ो भी राह-ए-महदी-ओ-अवतार देखना !
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क्या-क्या दिखा गया हमें छुप के यूँ आपका ;
झुकती हुई निगाह से इक बार देखना !
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ये तजज़िये मुकालमे सब ठीक हैं मगर ;
कुछ तो फ़राज़ सीखिए घर-बार देखना !
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