.
ज़ुल्मत में आ फंसा है, फिर कारवां हमारा !!
रहबर नहीं मयस्सर, ना पासबाँ हमारा !!
.
शाहों की शह पे घिर के, सड़कों पे मर रहे हैं ;
बिल्कुल ही छिन चुका है, चैनो-अमाँ हमारा !!
.
तर्ज़े हयात हो या , साबिक़ नुक़ूश उनको ;
खलने लगा बहुत है, हर इक निशाँ हमारा !!
.
मकतब पे बंदिशें हैं, मस्जिद है ज़ेरे आतिश,
राह पर जला पड़ा है, देखो क़ुरां हमारा !!
.
सौ बार लिख चुके हैं , सारे जवाब फिर भी ;
होता नहीं मुकम्मल , क्योँ इम्तेहां हमारा !!
.
उन ने सितमगरी से, खींचे न हाथ फिर भी ;
बनकर दुआ उठा है , दर्दे निहां हमारा !!
.
ये वो ज़मीं तो हरगिज़, लगती नहीं कि जिसको ;
इक़बाल ने कहा था, हिन्दोस्तां हमारा !!
.

(written in response to Bihar riots, 2018)