jauhar hijaab ke
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हज़रत जो हैं मुबल्लिग़े-अकबर हिजाब के !!
मा’नी नहीं हैं जानते अक्सर हिजाब के ||
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बेटी की पाक हसरते-इल्मो-हुनर की लाश ;
इज़्ज़त के साथ दफ़्न है अंदर हिजाब के !!
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पामाली-ए-हुक़ूक़ की शिद्दत के बाद भी ;
टुकड़े उठाए सर पे है दुख़तर हिजाब के ||
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हूराने-ख़ुल्द चाहिए सो मर्दे-बद-निगाह ;
मरते हैं सब हिमायती रहकर हिजाब के ||
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औरत को ले-के आपके तर्ज़े-अमल से आज ;
कालिख़ लगी है देखिये मुंह पर हिजाब के ||
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ज़हनों से जब ये क़ौम ही मग़लूब हो गयी ;
कब तक बचेगा दीन भी दम पर हिजाब के ||
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चेहरे पुते हुए हैं कि असली न दिख सके ;
मज़हर क़ुबूल हैं उन्हें बदतर हिजाब के ||
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ज़ीनत फ़रोग़ पा गयी , पर्दा भी हो गया ;
ज़ेवर को मात कर गए जौहर हिजाब के ||
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फिर दोगुने लिबास का मतलब ही क्या रहा ;
दिखती नहीं है जब हया बाहर हिजाब के ||
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आदी खुली-फ़िज़ा के ये मख़मूर मर्दो-ज़न ;
मुजरिम फ़राज़ सब हैं बराबर हिजाब के ||
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