kaafiri ke sath
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उम्र -ए- तवील चाहिए, ना तीरगी के साथ !!
दरकार ज़िन्दगी हमें है रौशनी के साथ !!
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मुल्हिद के है दिमाग़ में मा’नी का एहतराम ;
या’नी दग़ा, फ़रेब, जफ़ा, काफ़िरी के साथ !!
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उनको नसीब ख़ुल्द में दोज़ख़ का हो मज़ा ;
जो दिल-ख़राश बात करें दिल्लगी के साथ !!
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सागर अगर ख़मोश है , तूफ़ां के ख़ौफ़ से ;
क़तरा भी मुत्मइन रहे अपनी कमी के साथ !!
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मरकूज़ ऐब यार में बाक़ी तो हों न हों ;
लाज़िम मगर है ख़ास शग़फ़ शायरी के साथ !!
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जलता है चाँद याद का आँखों की झील में ;
आता है जब नज़र हमें कोई किसी के साथ !!
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बरसों रही वजूद में बनकर ख़लिश फ़राज़ ;
इक गुफ़्तगू जो ख़त्म हुई अनकही के साथ !!
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