kahne lagiN nahiN
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रिश्ता हमारा यूँ है, कि बाहम यक़ीं नहीं !!
रौशन वले जबीं है, दिले - महजबीं नहीं !!
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जम्हूर के निज़ाम में दहक़ाँ का हाल ये ;
रौग़न जहाँ बने है , चराग़ाँ वहीँ नहीं !!
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हमपे सितमगरों ने, वो शिद्दत करी कि बस ;
हूरें भी रो के ख़ुल्द में कहने लगीं, “नहीं” !!
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आदम है जब असल में मुख़ातब किताब में ;
मिम्बर के क्योँ ख़िताब का मौज़ू’ ज़मीं नहीं ?
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हमने इसी ख़याल , में मुद्दत गुज़ार दी ;
होगा जवाब उनका, कभी तो “नहीं” नहीं !!
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अहमक़ ही हैं फ़राज़, वो दीदार को बज़िद
आख़िर ख़ुदा वही है, जो दिखता कहीँ नहीं !!
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