kam dekhte haiN
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तक़ाज़ात-ए-नाज़-ए-सनम देखते हैं !!
फ़राहम वसाइल अदम देखते हैं !!
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बियाबाँ को बाग़-ए-इरम देखते हैं !!
जहाँ पर तुझे पुर-सितम देखते हैं !!
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है दिल में कुदूरत कि ख़्वारी का ख़द्शा ;
हमारी तरफ़ आप कम देखते हैं !!
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अयाँ कर वो परदे से लग़ज़िश के सामाँ ;
निहाँ वस्फ़-ए-साबित-क़दम देखते हैं !!
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सभी देखते हैं जब अपने मुताबिक़ ;
हमें जो ग़रज़ है वह हम देखते हैं !!
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हुई अब रफ़ाक़त भी रुस्वा कि रिश्ते ;
गिरानी-ए-दाम-ओ-दिरम देखते हैं !!
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सरे-बज़्म हम, अज़-बयान-ए-सदाक़त ;
शरीफ़ों की गर्दन को ख़म देखते हैं !!
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दलील-ए-वजूद-ए-अज़ल है अ’दालत ;
जो फ़ितरत में अपनी रक़म देखते हैं !!
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मुक़र्रर जगह पर खड़े मुन्तज़िर हम ;
तिरे ख़त में लफ़्ज़-ए-क़सम देखते हैं ||
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रहेगा मुसल्लत सरों पर ये कब तक ;
हुकूमत का जाह-ओ-हशम देखते हैं !!
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फ़राज़ अब कहाँ तक करेंगे तकल्लुफ़ ;
चलो आज ज़ोर-ए-क़लम देखते हैं ||
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