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बराए - बसीरत , अना-ए-ख़िरद को ;
ख़ुदा कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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क़ुयूद-ए-रिवाज-ए-क़दीमी से ख़ुद को;
रिहा कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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गुमाँ के फ़ुसूं को , हक़ीक़ी जहाँ से ;
जुदा कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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कि हरदम ख़याली तलातुम में गुम हूँ ;
नशा कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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जलाएगा जाँ को , जो शोला उसी को ;
हवा कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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ज़माने की ख़ातिर , उसूलों से अपने ;
दग़ा कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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फ़राइज़ से बचने का फिर से बहाना ;
नया कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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नदामत के मारे ख़ुद अपने ही रुख़ से ;
हया कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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मगर हश्र के फिर नताइज से ख़ाइफ़ ;
दुआ’ कर रहा हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ !!
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written when atheism impacted me initially)