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गर कहीं से लग गयी कुछ हाथ ईदी, ईद है !!
फ़क़्रो-फ़ाक़ा ऐश वरना, ला-मकानी ईद है !!
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असलियत के टाट में कमख़्वाब के पैवन्द से ;
नक़्स ढकने के सिवा क्या मुफ़लिसी की ईद है !!
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साल भर रहती है वा, ताबे-रुख़े-ज़ुल्मो-जफ़ा ;
अल-ग़रज़ बस एक दिन की पर्दा-दारी ईद है !!
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शाक़ गुज़री हैं ज़मीं पर और भी ईदें मगर ;
आलमी बेचारगी की आज पहली ईद है !!
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फिर नहीं महबूब जिनके वेंटिलेटर से उठे ;
क्या मनाते वह उन्होंने हाँ गुज़ारी ईद है !!
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वह यमन हो या फ़लस्तीं या कराची, चीन हो ;
है कोई भी ग़म-ज़दा तो ना-ख़ुश अपनी ईद है !!
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उज़्र हम मजबूरियों का दे रहे थे फ़ोन पर ;
उस तरफ़ माँ रो रही थी कह रही थी ईद है !!
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गर्दिशे-महताब की पाबंदियों से बालातर ;
ज़िन्दगी रमज़ान हो तो जावेदानी ईद है !!
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चाहते हैं टूट कर उनसे गले लगना फ़राज़ ;
छोड़ तन्हा , दूर जा , ऐ ना-मुरादी, ईद है !!
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