mujhko-laga-gHalat
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लगता न इस क़दर बुरा कहना तिरा ग़लत !
कहता जो आजिज़ी से कि “मुझको लगा ग़लत” !
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दुनिया फ़रेब है कि हक़ीक़त नहीं पता ;
और तुमने मेरी बात को सीधा कहा ग़लत !
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कितनी मिसाल हैं कि वो साबित हुआ सहीह ;
वाइज़ रिवायतन जिसे कहता रहा ग़लत !
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हम उस नहज पे हैं जहाँ सब कुछ फ़ज़ूल है ;
यानी यक़ीं सहीह न है वसवसा ग़लत !
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जिसपर किसी की जान का दारोमदार था ;
उफ़ ! हो गया है मुझसे वही फ़ैसला ग़लत !
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पहले तो इक ख़ता हुई, फिर उसकी बाज़गश्त ;
और फिर दिलो-दिमाग़ ने क्या-क्या किया ग़लत !
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यूसुफ़ भी आ गए थे ज़ुलैख़ा के फेर में ;
बस यूँ हुआ कि ग़ैब से आई निदा ‘ग़लत’ !
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लफ़्ज़ों के हेर-फेर में माहिर नहीं था मैं ;
ठहरा दिया सभी ने मिरा बोलना ग़लत !
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