nahiN bani meri
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हाय, उस बज़्म में , जो थी मेरी !!
कितनी मुश्किल है हाज़िरी मेरी !!
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जिसपे शैदा जहाँ , वही मंज़िल ;
राह तकती है, आज भी मेरी !!
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इक नदामत सी मुझ में ज़िन्दा है ;
रूह-ए-सरवर तो मर गयी मेरी !!
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चूंकि बाग़ी था हर हुकूमत का ;
बाप से भी नहीं बनी मेरी !!
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ज़िक्र से ख़ूबियाँ रहीं ग़ायब ;
हाँ, नुमायां थी कज - रवी मेरी !!
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बनीं सैलाब में नहीं कश्ती ;
डिग्रियां सब थीं काग़ज़ी मेरी !!
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मैं फ़क़त बुलबुले सा उभरा हूँ ;
मुझसे पहले थी या कमी मेरी !!
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तुम कि पाबंदे-रस्मे-दुनिया हो ;
ख़ाक समझोगे शायरी मेरी !!
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