nahiN hai dost
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वैसे तो मसअ’ला ये अना का नहीं है दोस्त !
हर बार सर मैं ख़म करूँ अच्छा नहीं है दोस्त !
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बेहतर है गुफ़्तगू में तकल्लुफ़ बना रहे ;
रिश्ता बिना लिहाज़ के चलता नहीं है दोस्त !
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हर रफ़्तगान-ए-शहर-ए-दिल-ए-ज़ार ने कहा ;
उसका तो है ख़ुदा कोई जिसका नहीं है दोस्त !
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बदले में कुछ सुकून के जाते हैं रात-दिन ;
सामाने-शौक़ आज भी सस्ता नहीं है दोस्त !
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है मा-सिवाये-रख़्त-ए-सफ़र और सब फ़ुज़ूल ;
दुनिया महज़ सराय है मेला नहीं है दोस्त !
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ज़िक्रे तुफ़ंग-ओ-तीर न है फ़िक्रे-इनक़िलाब ;
रुकना यहाँ पे अब मिरे बस का नहीं है दोस्त !
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सुन लो न ताकि बाद में तुमको बुरा लगे ;
अच्छा तो है फ़राज़ पे सीधा नहीं है दोस्त !
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