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वह ख़फ़ी शोख़-बयाँ, जान-ए-हया है, क्या है !!
नाम जिसका मेरी क़िस्मत में लिखा है क्या है !!
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मर गयी दे के सदा लाख मेरी मज़लूमी ;
तब मसीहा ने मेरे मुझसे कहा है, “क्या है” !!
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हो गयीं बन्द तमद्दुन की किताबें सारी ;
इल्मे-कामिल है सबब, ज़ोरे-हवा है, क्या है !!
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यों ही चाहे जो तबीअ’त कभी साकित रहना ;
ख़ार लगती है ये पुरसिश हमें “क्या है क्या है” !!
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इतनी क़ुरबत है कि बेज़ार हुए जाते हैं ;
रब्त में लुत्फ़ नहीं , गर न ख़ला है क्या है ?
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सर - बसज्दा तेरे आगे थे मलाइक सारे ;
मरतबा कुछ भी तेरा तुझको पता है क्या है !!
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वस्फ़ महफ़िल के नहीं घर पे हैं दिखते जानां ;
ये जो ग़ैरों पे करम हमसे हया है, क्या है !!
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पहले बनते थे फ़लक पर ही मुक़द्दस रिश्ते ;
अब तक़द्दुस न सनम का, न ख़ुदा है क्या है !!
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