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हैं मुवह्हिद सो पी नहीं जाती !!
फिर ये क्यों बे-ख़ुदी नहीं जाती !!
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लोग कितने ही रोज़ मिलते हैं ;
एक उनकी कमी नहीं जाती ||
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ग़म मिरा गर गया नहीं होता ;
दोस्तों की ख़ुशी नहीं जाती ||
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जाम हम तक गो कम नहीं आता ;
हाँ मगर तिशनगी नहीं जाती ||
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चाँद पर भी ज़वाल आता है ;
पर तिरी दिलकशी नहीं जाती ||
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रूह का इंतेक़ाल होता है ;
मौत से ज़िन्दगी नहीं जाती ||
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चश्मे-हसरत वह पढ़ नहीं पाते ;
और हमसे कही नहीं जाती ||
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है मसर्रत शिकस्ता-हाली में ;
क्या करें सादगी नहीं जाती ||
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चैन कब हम फ़राज़ पाएंगे ;
आशिक़ी तो कभी नहीं जाती ?
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