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मनसूब कहीं फ़िरक़ा कहीं ज़ात करो हो !!
क्या ख़ूब बयाँ , ख़ूबी-ए-आयात करो हो !!
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सरज़द हो कोई कारे-बग़ावत भी किसी दिन ;
हर रोज़ फ़क़त शिकवा-ए-हालात करो हो !!
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कहते हो पसे - पर्दा है मौजूद नहीं कोई ;
इक-दो ही अभी चाक हिजाबात करो हो !!
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ले आए हो औरत को जो बाज़ार में उरयाँ ;
ये काम भी बा-नामे-मुसावात करो हो !!
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कल तक तो मेरे पास बसर रात करे थे ;
दुश्मन से मेरे आज , सुना बात करो हो !!
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देते हुए डरता हूँ मैं जुम्बिश भी ज़बाँ को ;
हर बात पे तुम सौ तो, सवालात करो हो !!
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उनसे तेरी निस्बत को है दरकार वज़ाहत ;
ये क्या कि फ़राज़ आप, इशारात करो हो !!