sune koi
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फिर न अर्ज़े-वफ़ा सुने कोई ||
गर जो हमने सुना, सुने कोई ||
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तंग आ कर शिनाख़्त बदली है ;
और कितना बुरा सुने कोई ||
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सिसकियाँ, तेज़ धड़कनें, आहें ;
कुछ तो “हाँ” के सिवा सुने कोई ||
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इस तवक़्क़ो से ख़ामुशी रोई ;
आँख की इल्तिजा सुने कोई ||
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वक़्त की तह से आ रही धीमी ;
चीख़ हसरत की क्या सुने कोई ||
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क्योँ ना भागे बताओ वाइ’ज़ से ;
जब वही बारहा सुने कोई ||
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फिर मसाइल को छुप के गलियों में ;
क़ौम का रहनुमा सुने कोई ||
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बस तुम्हीं हो फ़राज़ क्या दाना ;
क्योँ तुम्हारा कहा सुने कोई ||
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