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या रब मिरे हवास पे तारी हैं कुछ सवाल !!
जिनके जवाब रात-दिन, ढूँढे, नहीं मिले !!
या रब तमाम फ़लसफ़ों की ख़ाक छान ली ;
लेकिन कहीं भी प्यास को पानी नहीं मिला !!
या रब तिरी किताब के औराक़, बा-अदब ;
पलटे मगर यक़ीं में इज़ाफ़ा नहीं हुआ !!
या रब जो लोग साथ थे आगे निकल गए ;
अंजाम का मैं रह गया आग़ाज़ ढूँढता !!
या रब अगरचे था तिरी क़ुदरत का मो’तरिफ़ ;
फिर भी दुआ’ ने काम दवा का नहीं किया !!
या रब ये सोच कर कि बनाया गया हूँ मैं ;
है ज़हन सुब्हो-शाम अज़ीअ’त में मुब्तिला !!
या रब दक़ीक़ रूह पे इश्काल थे जो थे ;
है अब वजूदे-जिस्म भी शक के हिसार में !!
या रब नहीं कि हाल पे शर्मिंदगी नहीं ;
एहसास के मगर कोई मा’नी नहीं रहे !!
या रब हैं अब जहान को वह पेश मसअले ;
जिनपर तिरे निसाब में मज़मूँ नहीं छपे !!
या रब मिरी ये चाह है तसकीन पाए दिल ;
लेकिन अना-ए-अक़्ल को नाराज़गी न हो !!
या रब सिवाए आपके है कौन ग़ैब-दाँ ;
तो सोचता हूँ आपसे कुछ गुफ़्तगू करूँ !!
या रब अगर हो इज़्न तो कुछ अर्ज़ हो गिला ;
वरना जो पढ़ रहा था वही मन्क़बत पढूं !!
या रब रुबूवियत को तक़ाज़ा ज़हूर का ;
क्या आ पड़ा कि आपने इनसाँ बना दिए !!