zindagi thokar
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क्यों न खायेगा आदमी ठोकर !!
खाई आदम ने जन्नती ठोकर !!
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है रखी मुफ़लिसों की गर्दन पर ;
अहले-दौलत ने आज भी ठोकर ||
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हर सितमगर यही पढ़ायेगा ;
तेरी क़िस्मत में है लिखी ठोकर !!
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पहली धोखा है दूसरी ग़लती ;
जुर्म लेकिन है तीसरी ठोकर ||
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याद बरसों नहीं ख़ुदा आया ;
एक दिन फिर हमें लगी ठोकर ||
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ढूंढता फिर रहा हूँ उठ उठ कर ;
अपने हिस्से की आख़िरी ठोकर ||
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हाय वह फ़र्द निचले तबक़े का ;
जिसकी पूरी है ज़िन्दगी ठोकर ||
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