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शौक़ कितने पस्त हैं ये, ज़ुल्फ़ देखो हिना देखो ;
महवे-ज़ौके-दर्द तुम तो, ज़ुल्म देखो जफ़ा देखो !!
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हुस्न के दीदार से गर , चश्म तस्कीन पा लें तो;
नातवाँ उस फ़ाक़ाकश के जिस्म को भी ज़रा देखो !!
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तर्क करके चैन वक़्ती, दे के बाग़ी सदा देखो ;
क्यों सनम की उम्र भर तुम, तल्ख़-ज़ालिम अदा देखो !!
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तुम यक़ी की चश्म से बस, हुक्मे नूरुल हुदा देखो ;
अहले-फ़िक्रे-बे-हया को, जब भी जलवानुमा देखो !!
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इल्म देखो, अज़्म देखो, सब्र देखो , वफ़ा देखो ;
फिर नबी को बद्र में तुम, बा’दे-ग़ारे हिरा देखो !!
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शाह का जब तर्ज़ हो ये , ख़ौफ़ पैदा न हो क्योंकर ;
दुश्मनों को दूर से, ख़ामोश लुटता हुआ देखो ||
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ज़िंदा रहना है अगर तो, हश्र कर दो यहीं बरपा ;
मत फ़राज़ अब हार कर तुम, अदले-रोज़े-जज़ा देखो !!
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